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संस्कृत का चमत्कार

संस्कृत में निम्नलिखित विशेषताएँ हैं जो उसे अन्य सभी भाषाओं से उत्कृष्ट और विशिष्ट बनाती हैं।

( ०१ ) अनुस्वार (अं ) और विसर्ग(अ:) :- 
संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण और लाभदायक व्यवस्था है, अनुस्वार और विसर्ग। 
पुल्लिंग के अधिकांश शब्द विसर्गान्त होते हैं —
यथा- राम: बालक: हरि: भानु: आदि। और
नपुंसक लिंग के अधिकांश शब्द अनुस्वारान्त होते हैं—यथा- जलं वनं फलं पुष्पं आदि।

अब जरा ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि विसर्ग का उच्चारण और कपालभाति प्राणायाम दोनों में श्वास को बाहर फेंका जाता है। अर्थात् जितनी बार विसर्ग का उच्चारण करेंगे उतनी बार कपालभाति प्रणायाम अनायास ही हो जाता है। जो लाभ कपालभाति प्रणायाम से होते हैं, वे केवल संस्कृत के विसर्ग उच्चारण से प्राप्त हो जाते हैं।
उसी प्रकार अनुस्वार का उच्चारण और भ्रामरी प्राणायाम एक ही क्रिया है । भ्रामरी प्राणायाम में श्वास को नासिका के द्वारा छोड़ते हुए भौंरे की तरह गुंजन करना होता है, और अनुस्वार के उच्चारण में भी यही क्रिया होती है। अत: जितनी बार अनुस्वार का उच्चारण होगा , उतनी बार भ्रामरी प्राणायाम स्वत: हो जावेगा।
कपालभाति और भ्रामरी प्राणायामों से क्या लाभ है? यह बताने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि स्वामी रामदेव जी जैसे संतों ने सिद्ध करके सभी को बता दिया है। मैं तो केवल यह बताना चाहता हूँ कि संस्कृत बोलने मात्र से उक्त प्राणायाम अपने आप होते रहते हैं।
जैसे हिन्दी का एक वाक्य लें- ” राम फल खाता है“

इसको संस्कृत में बोला जायेगा- ” राम: फलं खादति”
राम फल खाता है ,यह कहने से काम तो चल जायेगा ,किन्तु राम: फलं खादति कहने से अनुस्वार और विसर्ग रूपी दो प्राणायाम हो रहे हैं। यही संस्कृत भाषा का रहस्य है।

-जयशंकर द्विवेदी ‘विश्वबंधु’

माहेश्वर सूत्र की व्याख्या

अ इ उ ण् । 
ऋ लृ क् । 

ए ओं ङ् । 

ऐ औ च् । 

ह य व र ट् । 
ल ण् । 

ञ म ङ ण न म् । 

झ भ ञ् । 

घ ढ ध ष् । 

ज ब ग ड द श् । 

ख फ छ ठ थ च ट त व् । 

क प य् । 

श ष स र् । 

ह ल् ।

उपर्युक्त्त १४ सूत्रों में संस्कृत भाषा के वर्णों (अक्षरसमाम्नाय) को एक विशिष्ट प्रकार से संयोजित किया गया है। फलतः, महर्षि पाणिनि को शब्दों के निर्वचन या नियमों मे जब भी किन्ही विशेष वर्ण समूहों (एक से अधिक) के प्रयोग की आवश्यकता होती है, वे उन वर्णों (अक्षरों) को माहेश्वर सूत्रों से प्रत्याहार बनाकर संक्षेप मे ग्रहण करते हैं। 
माहेश्वर सूत्रों को इसी कारण ‘प्रत्याहार विधायक’ सूत्र भी कहते हैं। प्रत्याहार बनाने की विधि तथा 
संस्कृत व्याकरण मे उनके बहुविध प्रयोगों को आगे दर्शाया गया है।

इन १४ सूत्रों में संस्कृत भाषा के समस्त वर्णों को समावेश किया गया है। प्रथम ४ सूत्रों (अइउण् – ऐऔच्) में स्वर वर्णों तथा शेष १० सूत्र व्यञ्जन वर्णों की गणना की गयी है। संक्षेप में स्वर वर्णों को अच् एवं व्यञ्जन वर्णों को हल् कहा जाता है। अच् एवं हल् भी प्रत्याहार हैं।
“प्रत्याहार” का अर्थ होता है – संक्षिप्त कथन। अष्टाध्यायी के प्रथम अध्याय के प्रथम पाद के 71वें सूत्र ‘आदिरन्त्येन सहेता’ (१-१-७१) सूत्र द्वारा प्रत्याहार बनाने की विधि का श्री पाणिनि ने निर्देश किया है।
आदिरन्त्येन सहेता (१-१-७१): (आदिः) आदि वर्ण (अन्त्येन इता) अन्तिम इत् वर्ण (सह) के साथ मिलकर प्रत्याहार बनाता है जो आदि वर्ण एवं इत्सञ्ज्ञक अन्तिम वर्ण के पूर्व आए हुए वर्णों का समष्टि रूप में (collectively) बोध कराता है।
उदाहरण: =
अच् = प्रथम माहेश्वर सूत्र ‘ अइउण् ’ के आदि वर्ण ‘ अ ’ को चतुर्थ सूत्र ‘ ऐऔच् ’ के अन्तिम वर्ण ‘ च् ’ से योग कराने पर ” अच् ” प्रत्याहार बनता है। यह ” अच् ” प्रत्याहार अपने आदि अक्षर ‘ अ ’ से लेकर इत्संज्ञक ‘ च् ‘ के पूर्व आने वाले औ पर्यन्त सभी अक्षरों का बोध कराता है। 
अतः,
अच् = अ इ उ ॠ ॡ ए ऐ ओ औ।

इसी तरह ‘ हल् ‘ प्रत्याहार की सिद्धि ५ वें सूत्र ‘ हयवरट् ‘ के आदि अक्षर ‘ ह ’ को अन्तिम १४ वें सूत्र ‘ हल् ‘ के अन्तिम अक्षर ‘ ल् ‘ के साथ मिलाने (अनुबन्ध) से होती है। 
फलतः,
हल् = ह य व र, ल, ञ म ङ ण न, झ भ, घ ढ ध,

ज ब ग ड द, ख फ छ ठ थ च ट त, क प, श ष स, ह।

उपर्युक्त सभी १४ सूत्रों में अन्तिम वर्ण की ” इत् संज्ञा ” श्री पाणिनि मुनिने की है। ” इत् संज्ञा ” होने से इन अन्तिम वर्णों का उपयोग प्रत्याहार बनाने के लिए केवल अनुबन्ध (Bonding) हेतु किया जाता है,
लेकिन व्याकरणीय प्रक्रिया मे इनकी गणना नही की जाती है अर्थात् इनका प्रयोग नही होता है।

-जयशंकर द्विवेदी ‘विश्वबंधु’

संस्कृत वर्ण उच्चारण स्थान

ॐ ।। वर्णो के उच्चारणस्थान ।

@अ-कु-ह-विसर्जनीयानां कण्ठ: ।
-अकार, कवर्ग ( क, ख, ग, घ, ङ् ), हकार और विसर्जनीय का उच्चारण स्थान “ कण्ठ ” है ।

@इ-चु-य-शानां तालु । 
-इकार, चवर्ग ( च, छ, ज, झ, ञ ), यकार और शकार इनका “ तालु ” उच्चारण स्थान है ।

@ऋ-टु-र-षाणां मूर्धा ।
-ऋकार, टवर्ग ( ट, ठ, ड, ढ, ण ), रेफ और षकार इनका “ मूर्धा ” उच्चारण स्थान है ।

@लृ-तु-ल-सानां दन्ता: ।
-लृकार, तवर्ग ( त, थ, द, ध, न ), लकार और सकार इनका उच्चारण स्थान “ दन्त ” है ।

@उ-पु-उपध्मानीयानाम् ओष्ठौ ।
-उकार, पवर्ग ( प, फ, ब, भ, म ) और उपध्मानीय इनका उच्चारण स्थान “ ओष्ठ ” है ।

@ञ-म-ङ-ण-नानां नासिका च ।
-ञकार-मकार-ङकार-णकार-नकार इनका उच्चारण स्थान “ नासिका ” है ।

@ऐदैतौ: कण्ठ-तालु ।
-ए और ऐ का उच्चारण स्थान “ कण्ठ-तालु ” है ।

@ओदौतौ: कण्ठोष्ठम् ।
-ओ और औ का उच्चारण स्थान “ कण्ठ-ओष्ठ ” है ।

@‘ व ’ कारस्य दन्तोष्ठम् ।
-वकार का उच्चारण स्थान “दन्त-ओष्ठ ” है ।

@जिह्वामूलीयस्य जिह्वामूलम् ।
-जिह्वामूलीय का उच्चारण स्थान “ जिह्वामूल ” है ।

@अनुस्वारस्य नासिका ।
-अनुस्वार का उच्चारण स्थान “ नासिका ” है ।

@क, ख इति क-खाभ्यां प्राग् अर्ध-विसर्गसद्दशो जिह्वा-मूलीय: ।
-क, ख से पूर्व अर्ध विसर्ग सद्दश “ जिह्वामूलीय ” कहलाते है ।

@प, फ इति प-फाभ्यां प्राग् अर्ध-विसर्ग-सद्दश उपध्मानीय: ।
-प, फ के आगे पूर्व अर्ध विसर्ग सद्दश “ उपध्मानीय ” कहलाते है ।

@अं , अ: इति अच् परौ अनुस्वार-विसर्गौ ।
-अनुस्वार और विसर्ग “ अच् ” से परे होते है; जैसे — अं , अ: ।

जयतु संस्कृतम् ।। पठतु संस्कृतम् ।। वदतु संस्कृतम्  ।। लिखतु संस्कृतम् ।।

जयशंकर द्विवेदी ‘विश्वबंधु’

संस्कृत समय

प्रश्न :- ५ घण्टा १० मिनट १२ सेकन्ड (5 hours-10 minutes-12 seconds ) को संस्कृत मे कैसे लिखते है ? 
उत्तर :- द्वादश कला अधिक दश निमिष अधिक पञ्च वादनम् ।
कला – सेकन्ड – second
निमिष – मिनट – minute

संस्कृत व्याकरण

ॐ ।। संस्कृत व्याकरण के विषय मे महत्वपूर्ण जानकारी :- 
🔹प्रश्न :- व्याकरण किसे कहते हैं ?

उत्तर :- वह शास्त्र जिससे शब्दों की शुद्धि होती है । उस शास्त्र को ही व्याकरण कहा जाता है ।
🔹प्रश्न :- संस्कृत भाषा का व्याकरण कौन सा है ?

उत्तर :- सँस्कृत भाषा का सर्वश्रेष्ठ व्याकरण अष्टाध्यायी और महाभाष्य है ।
🔹प्रश्न :- अष्टाध्यायी किसको कहते हैं ?

उत्तर :- आठ अध्यायों के शास्त्र को अष्टाध्यायी कहते हैं ।
🔹प्रश्न :- अष्टाध्यायी में क्या है ?

उत्तर :- अष्टाध्यायी में सम्पूर्ण शब्द विज्ञान है ।
🔹प्रश्न :- अष्टाध्यायी में कितने सूत्र हैं ?

उत्तर :- अष्टाध्यायी में कुल ३९८० सूत्र हैं ।
🔹प्रश्न :- सूत्र किनको बोलते हैं ?

उत्तर :- संक्षिप्त नियमों को सूत्र कहते हैं ।
🔹प्रश्न :- अष्टाध्यायी सूत्रों को पढ़ने से क्या होगा ?

उत्तर :- आष्टाध्यायी सूत्रों को पढ़ने से शब्द विज्ञान का बोध होगा । और संस्कृत भाषा बोलने और अर्थ करने में शुद्धता आएगी ।
🔹प्रश्न :- अष्टाध्यायी सूत्रों में कौनसा विज्ञान है ?

उत्तर :- अष्टाध्यायी का ये मूल सूत्र है :- 

( अइउण् ऋऌक् एओङ् ऐऔच् हयवरट् लण् ञमङणनम् झभङ् घढधष् जबगडदश्

खफछठथचटतव् कपय् शषसर् हल् ) इस सूत्र में सभी वर्ण आते हैं,

इनको आगे पीछे एक दूसरे के साथ कब, कहाँ और कैसे जोड़ना है इसी का विज्ञान इन ३९८० सूत्रों में है ।
🔹प्रश्न :- अष्टाध्यायी की रचना किसने की ?

उत्तर :- अष्टाध्यायी की रचना महर्षि पाणीनि ने की है ।
🔹प्रश्न :- महाभाष्य क्या है ?

उत्तर :- महाभाष्य पाणीनि मुनि की अष्टाध्यायी के ३९८० सूत्रों का भाष्य है ।
🔹प्रश्न :- महाभाष्य की रचना किसने की ?

उत्तर :- महाभाष्य की रचना महर्षि पतञ्जली ने की । ( लेकिन ये पतञ्जली मुनि , योगशास्त्र की रचना करने वाले पतञ्जली मुनि से अलग हैं, दोनों एक ही नहीं हैं )
🔹प्रश्न :- व्याकरण पढ़ने के क्या लाभ हैं ?

उत्तर :- व्याकरण पढ़ने के लाभ नीचे लिखित हैं :-
(१) व्याकरण पढ़ने वाले मनुष्य का शब्द कोष करोड़ों अरबों का हो जाता है । क्योंकि वह असंख्य शब्द अपने आप बना सकता है ।
(२) व्याकरण पढ़ा हुआ मनुष्य वेद और सभी शास्त्रों का शुद्ध अर्थ करने में समर्थ होता है ।
(३) व्याकरण पढ़ा हुआ मनुष्य शब्द ज्ञान से परिपूर्ण होता है ।
(४) वह लौकिक और वैदिक दोनों शब्दों के अर्थ का जानने वाला होता है ।
🔹प्रश्न :- वेदों का सपष्ट और शुद्ध अर्थ किससे होता है ?

उत्तर :- वेदों का शुद्ध और स्पष्ट अर्थ केवल पाणीनिय व्याकरण से ही होता है । ( कौमुदी या सारस्वत जैसे अवैदिक व्याकरण से नहीं )
🔹प्रश्न :- व्याकरण को पढ़ने में कितना समय लगता है ?

उत्तर :- व्याकरण को पढ़ने के लिए ३ से लेकर ४ वर्ष तक का समय लग सकता है । डेढ वर्ष में अष्टाध्यायी और डेढ वर्ष में महाभाष्य ।
🔹प्रश्न :- ये व्याकरण कहाँ पर पढ़ाया जाता है ?

उत्तर :- पाणीनि और पतञ्जली मुनियों का ये व्याकरण आर्य समाज के गुरुकुलों में या काशी के कुछ स्थानों में पढ़ाया जाता है ।
🔹प्रश्न :- संस्कृत के व्याकरण की क्या विशेषता है ?

उत्तर :- ये व्याकरण पूरी पृथ्वी पर मानव मस्तिष्क की अब तक की सर्वश्रेष्ठ रचना है । और ये व्याकरण के नियमों में किञ्चित मात्र भी परिवर्तन नहीं हुआ सदियों से जैसा था आज भी वैसा ही है । बाकी भाषाओं के व्याकरण भ्रष्ट हैं और बदलते रहते हैं । केवल संस्कृत व्याकरण में ही शब्दों के सूक्ष्म रहस्यों को खोलने की क्षमता है ।

कवि जयशंकर द्विवेदी ‘विश्वबंधु’

संस्कृत साहित्य ज्ञान (उपनिषद)

जयश्रीमन्नारायणजी *108 उपनिषदों की सूची–   संकलित*
ईशादि  १०८ उपनिषदों की सूची –

१.ईश = शुक्ल यजुर्वेद, मुख्य उपनिषद्

२.केन उपनिषद् = साम वेद, मुख्य उपनिषद्

३.कठ उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, मुख्य उपनिषद् 

४.प्रश्नि उपनिषद् = अथर्व वेद, मुख्य उपनिषद्

५.मुण्डक उपनिषद् = अथर्व वेद, मुख्य उपनिषद्

६.माण्डुक्य उपनिषद् = अथर्व वेद, मुख्य उपनिषद्

७.तैत्तिरीय उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, मुख्य उपनिषद्

८.ऐतरेय उपनिषद् = ऋग् वेद, मुख्य उपनिषद्

९.छान्दोग्य उपनिषद् = साम वेद, मुख्य उपनिषद्

१०.बृहदारण्यक उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, मुख्य उपनिषद्

११.ब्रह्म उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्

१२.कैवल्य उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद्

१३.जाबाल उपनिषद् (यजुर्वेद) = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्

१४.श्वेताश्वतर उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्

१५.हंस उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, योग उपनिषद्

१६.आरुणेय उपनिषद् = साम वेद, संन्यास उपनिषद्

१७.गर्भ उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्

१८.नारायण उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, वैष्णव उपनिषद्

१९.परमहंस उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्

२०.अमृत-बिन्दु उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्

२१.अमृत-नाद उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्

२२.अथर्व-शिर उपनिषद् = अथर्व वेद, शैव उपनिषद्

२३.अथर्व-शिख उपनिषद् =अथर्व वेद, शैव उपनिषद्

२४.मैत्रायणि उपनिषद् = साम वेद, सामान्य उपनिषद्

२५.कौषीतकि उपनिषद् = ऋग् वेद, सामान्य उपनिषद्

२६.बृहज्जाबाल उपनिषद् = अथर्व वेद, शैव उपनिषद्

२७.नृसिंहतापनी उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्

२८.कालाग्निरुद्र उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद्

२९.मैत्रेयि उपनिषद् = साम वेद, संन्यास उपनिषद्

३०.सुबाल उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्

३१.क्षुरिक उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्

३२.मान्त्रिक उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्

३३.सर्व-सार उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्

३४.निरालम्ब उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्

३५.शुक-रहस्य उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्

३६.वज्रसूचि उपनिषद् = साम वेद, सामान्य उपनिषद्

३७.तेजो-बिन्दु उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्

३८.नाद-बिन्दु उपनिषद् = ऋग् वेद, योग उपनिषद्

३९.ध्यानबिन्दु उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्

४०.ब्रह्मविद्या उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्

४१.योगतत्त्व उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्

४२.आत्मबोध उपनिषद् = ऋग् वेद, सामान्य उपनिषद्

४३.परिव्रात् उपनिषद् (नारदपरिव्राजक) = अथर्व वेद, संन्यास उपनिषद्

४४.त्रिषिखि उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, योग उपनिषद्

४५.सीता उपनिषद् = अथर्व वेद, शाक्त उपनिषद्

४६.योगचूडामणि उपनिषद् = साम वेद, योग उपनिषद्

४७.निर्वाण उपनिषद् = ऋग् वेद, संन्यास उपनिषद्

४८.मण्डलब्राह्मण उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, योग उपनिषद्

४९.दक्षिणामूर्ति उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद्

५०.शरभ उपनिषद् = अथर्व वेद, शैव उपनिषद्

५१.स्कन्द उपनिषद् (त्रिपाड्विभूटि) = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्

५२.महानारायण उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्

५३.अद्वयतारक उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्

५४.रामरहस्य उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्

५५.रामतापणि उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्

५६.वासुदेव उपनिषद् = साम वेद, वैष्णव उपनिषद्

५७.मुद्गल उपनिषद् = ऋग् वेद, सामान्य उपनिषद्

५८.शाण्डिल्य उपनिषद् = अथर्व वेद, योग उपनिषद्

५९.पैंगल उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्

६०.भिक्षुक उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्

६१.महत् उपनिषद् = साम वेद, सामान्य उपनिषद्

६२.शारीरक उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्

६३.योगशिखा उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्

६४.तुरीयातीत उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्

६५.संन्यास उपनिषद् = साम वेद, संन्यास उपनिषद्

६६.परमहंस-परिव्राजक उपनिषद् = अथर्व वेद, संन्यास उपनिषद्

६७.अक्षमालिक उपनिषद् = ऋग् वेद, शैव उपनिषद्

६८.अव्यक्त उपनिषद् = साम वेद, वैष्णव उपनिषद्

६९.एकाक्षर उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्

७०.अन्नपूर्ण उपनिषद् = अथर्व वेद, शाक्त उपनिषद्

७१.सूर्य उपनिषद् = अथर्व वेद, सामान्य उपनिषद्

७२.अक्षि उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्

७३.अध्यात्मा उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्

७४.कुण्डिक उपनिषद् = साम वेद, संन्यास उपनिषद्

७५.सावित्रि उपनिषद् = साम वेद, सामान्य उपनिषद्

७६.आत्मा उपनिषद् = अथर्व वेद, सामान्य उपनिषद्

७७.पाशुपत उपनिषद् = अथर्व वेद, योग उपनिषद्

७८.परब्रह्म उपनिषद् = अथर्व वेद, संन्यास उपनिषद्

७९.अवधूत उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्

८०.त्रिपुरातपनि उपनिषद् = अथर्व वेद, शाक्त उपनिषद्

८१.देवि उपनिषद् = अथर्व वेद, शाक्त उपनिषद्

८२.त्रिपुर उपनिषद् = ऋग् वेद, शाक्त उपनिषद्

८३.कठरुद्र उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्

८४.भावन उपनिषद् = अथर्व वेद, शाक्त उपनिषद्

८५.रुद्र-हृदय उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद्

८६.योग-कुण्डलिनि उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, योग उपनिषद्

८७.भस्म उपनिषद् = अथर्व वेद, शैव उपनिषद्

८८.रुद्राक्ष उपनिषद् = साम वेद, शैव उपनिषद्

८९.गणपति उपनिषद् = अथर्व वेद, शैव उपनिषद्

९०.दर्शन उपनिषद् = साम वेद, योग उपनिषद्

९१.तारसार उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, वैष्णव उपनिषद्

९२.महावाक्य उपनिषद् = अथर्व वेद, योग उपनिषद्

९३.पञ्च-ब्रह्म उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शैव उपनिषद्

९४.प्राणाग्नि-होत्र उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद्

९५.गोपाल-तपणि उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्

९६.कृष्ण उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्

९७.याज्ञवल्क्य उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्

९८.वराह उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्

९९.शात्यायनि उपनिषद् = शुक्ल यजुर्वेद, संन्यास उपनिषद्

१००.हयग्रीव उपनिषद् (१००) = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्

१०१.दत्तात्रेय उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्

१०२.गारुड उपनिषद् = अथर्व वेद, वैष्णव उपनिषद्

१०३.कलि-सन्तारण उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, वैष्णव उपनिषद्

१०४.जाबाल उपनिषद् (सामवेद) = साम वेद, शैव उपनिषद्

१०५.सौभाग्य उपनिषद् = ऋग् वेद, शाक्त उपनिषद्

१०६.सरस्वती-रहस्य उपनिषद् = कृष्ण यजुर्वेद, शाक्त उपनिषद्

१०७.बह्वृच उपनिषद् = ऋग् वेद, शाक्त उपनिषद्

१०८.मुक्तिक उपनिषद् (१०८) = शुक्ल यजुर्वेद, सामान्य उपनिषद|

-जयशंकर द्विवेदी विश्वबन्धु

मुक्तक

जरूरी है  नही  हर  बात  का अनुकूलन हो जाना।

अगर मानव हैं तो  सम्भव किसी से भूल हो जाना।

जरा सी बात पर आपस में लड़कर क्या करेंगे हम,

तुम्हें भी धूल  हो  जाना  हमें  भी  धूल  हो  जाना।